भुव्नेश्वरी देवी कवच्

अति पुण्य-दायक है,सार का भी सार है,महा-विद्याओं का सामूहिक स्वरूप है। इसका पाठ करने से कुबेर भी धनेश्वर होते हैं। इन्दादि सभी देव इसके धारण करने से सभी सिद्धियों के स्वामी होकर समस्त ऐश्वर्य प्राप्त करते है। आठ पुष्पाञ्जलियाँ देकर एक बार मूल(कवच) पाठ करे,तो वर्ष भर की पूजा का फल मिलता है। लक्ष्मी घर में स्थिर होकर रहती है और मुख में सरस्वती निवास करती है,यह सत्य है। इसमें सन्देह नहीं। जो पुण्यात्मा त्रैलोक्य-मङ्गल नामक इस पवित्र कवच को धारण करता है,वह सभी ऐश्वर्यों से युक्त होकर त्रैलोक्य-विजयी होता है। पुरुष इसे दाहिनी भुजा में और स्त्री बाईं भुजा में धारण करे। बांझ स्त्री भी इस कवच के प्रभाव से बहु-पुत्र-वती होती है। ब्रह्मास्त्रादि शस्त्र उसश्रीभुवनेश्वरी त्रैलोक्यमोहनकवचम्

श्रीदेव्युवाच-
भगवन्, परमेशान, सर्वागमविशारद ।
कवचं भुवनेश्वर्याः कथयस्व महेश्वर! ॥

श्रीदेवी ने कहा-
हे सभी आगमों के ज्ञाता भगवन् महेश्वर! भुवनेश्वरी
के कवच को बताइये ।

श्री भैरव उवाच-
श‍ृणु देवि, महेशानि! कवचं सर्वकामदं ।
त्रैलोक्यमोहनं नाम सर्वेप्सितफलप्रदम् ॥

श्रीभैरव ने कहा-
हे महेशानि! त्रैलोक्यमोहन नामक कवच
सभी कामनाओं की पूर्तिं करनेवाला और सभी अभीष्ट फलों का
देनेवाला है । उसे सुनो ।

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीत्रैलोक्यमोहनकवचस्य श्रीसदाशिव ऋषिः ।
विराट् छन्दः । श्रीभुवनेश्वरी देवता ।
चतुर्वर्गसिद्ध्यर्थं कवचपाठे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः-
श्रीसदाशिवऋषये नमः शिरसि । विराट्छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीभुवनेश्वरीदेवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्गसिद्ध्यर्थं कवचपाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

अथ कवचस्तोत्रम् ।

ॐ ह्रीं क्लीं मे शिरः पातु श्रीं फट् पातु ललाटकम् ।
सिद्धपञ्चाक्षरी पायान्नेत्रे मे भुवनेश्वरी ॥ १॥

श्रीं क्लीं ह्रीं मे श्रुतीः पातु नमः पातु च नासिकाम् ।
देवी षडक्षरी पातु वदनं मुण्डभूषणा ॥ २॥

ॐ ह्रीं श्रीं ऐं गलं पातु जिह्वां पायान्महेश्वरी ।
ऐं स्कन्धौ पातु मे देवी महात्रिभुवनेश्वरी ॥ ३॥

ह्रूं घण्टां मे सदा पातु देव्येकाक्षररूपिणी ।
ऐं ह्रीं श्रीं हूं तु फट् पायादीश्वरी मे भुजद्वयम् ॥ ४॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं फट् पायाद् भुवनेशी स्तनद्वयम् ।
ह्रां ह्रीं ऐं फट् महामाया देवी च हृदयं मम ॥ ५॥

ऐं ह्रीं श्रीं हूं तु फट् पायात् पार्श्वौ कामस्वरूपिणी ।
ॐ ह्रीं क्लीं ऐं नमः पायात् कुक्षिं महाषडक्षरी ॥ ६॥

ऐं सौः ऐं ऐं क्लीं फट् स्वाहा कटिदेशे सदाऽवतु ।
अष्टाक्षरी महाविद्या देवेशी भुवनेश्वरी ॥ ७॥

ॐ ह्रीं ह्रौं ऐं श्रीं ह्रीं फट् पायान्मे गुह्यस्थलं सदा ।
षडक्षरी महाविद्या साक्षाद् ब्रह्मस्वरूपिणी ॥ ८॥

ऐं ह्रां ह्रौं ह्रूं नमो देव्यै देवि! सर्वं पदं ततः,
दुस्तरं पदं तारय तारय प्रणवद्वयम् ।
स्वाहा इति महाविद्या जानुनि मे सदाऽवतु ॥ ९॥

ऐं सौः ॐ ऐं क्लीं फट् स्वाहा जङ्घेऽव्याद् भुवनेश्वरी ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं फट् पायात् पादौ मे भुवनेश्वरी ॥ १०॥

ॐ ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं क्लीं क्लीं ऐं ऐं सौः सौः वद वद ।
वाग्वादिनीति च देवि विद्या या विश्वव्यापिनी ॥ ११॥

सौःसौःसौः ऐंऐंऐं क्लीङ्क्लीङ्क्लीं श्रींश्रींश्रीं ह्रींह्रींह्रीं ॐ ।
ॐ ॐ चतुर्दशात्मिका विद्या पायात् बाहू तु मे ॥ १२॥

सकलं सर्वभीतिभ्यः शरीरं भुवनेश्वरी ।
ॐ ह्रीं श्रीं इन्द्रदिग्भागे पायान्मे चापराजिता ॥ १३॥

स्त्रीं ऐं ह्रीं विजया पायादिन्दुमदग्निदिक्स्थले ।
ॐ श्रीं सौः क्लीं जया पातु याम्यां मां कवचान्वितम् ॥ १४॥

ह्रीं ह्रीं ऐं सौः हसौः पायान्नैऋतिर्मां तु परात्मिका ।
ॐ श्रीं श्रीं ह्रीं सदा पायात् पश्चिमे ब्रह्मरूपिणी ॥ १५॥

ॐ ह्रां सौः मां भयाद् रक्षेद् वायव्यां मन्त्ररूपिणी ।
ऐं क्लीं श्रीं सौः सदाऽव्यान्मां कौवेर्यां नगनन्दिनी ॥ १६॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महादेवी ऐशान्यां पातु नित्यशः ।
ॐ ह्रीं मन्त्रमयी विद्या पायादूर्ध्वं सुरेश्वरी ॥ १७॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मां पायादधस्था भुवनेश्वरी ।
एवं दशदिशो रक्षेत् सर्वमन्त्रमयो शिवा ॥ १८॥

प्रभाते पातु चामुण्डा श्रीं क्लीं ऐं सौः स्वरूपिणी ।
मध्याह्नेऽव्यान्मामम्बा श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः स्वरूपिणी ॥ १९॥

सायं पायादुमादेवी ऐं ह्रीं क्लीं सौः स्वरूपिणी ।
निशादौ पातु रुद्राणी ॐ क्लीं क्रीं सौः स्वरूपिणी ॥ २०॥

निशीथे पातु ब्रह्माणी क्रीं ह्रूं ह्रीं ह्रीं स्वरूपिणी ।
निशान्ते वैष्णवी पायादोमै ह्रीं क्लीं स्वरूपिणी ॥ २१॥

सर्वकाले च मां पायादो ह्रीं श्रीं भुवनेश्वरी ।
एषा विद्या मया गुप्ता तन्त्रेभ्यश्चापि साम्प्रतम् ॥ २२॥

मेरे मुख से निकला यह कवच मन्त्रविद्यात्मक है । गुरुदेव की पूजा
कर विधिपूर्वकं इस कवच को यदि साधक ध्यानपूर्वक धारण करता
है, तो वह तत्क्षण ही सभी पापों से मुक्त होकर भैरवस्वरूप
बन जाता है और करोडों कुलों का उद्धार कर देता है ॥ २॥

इस कवच के प्रभाव से साधक गुरुवत् सभी विद्याओं के जप करने
का अधिकारी बन जाता है । इस स्तोत्र का पुरश्चरण १०८ वार के
पारायण से होता है । १०८ बार इसका जप कर उतना ही होम करें ।
इससे साधक तीनों लोकों में गणनाथ के समान विचरण करता है ॥ ३॥

आठ पुष्पाञ्जलियां भगवती भुवनेश्वरी को अर्पित कर मूल
कवच का पाठ करने से साधक की वाणी गङ्गा की धारा के समान
गद्यपद्यमयी होकर धाराप्रवाह वह निकलती है ॥ ४॥

इति श्रीभुवनेश्वरीत्रैलोक्यमोहनकवचं सम्पूर्णम् ।

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