भुवनेश्वरी ह्रीं मंत्र

भुवनेश्वरी ह्रीं मंत्र साधना


इन देवी के कई मंत्र हैं जो क्लिष्ट होने के साथ गुरुगम्य भी हैं पर एक सरल सा एकाक्षरी बीज मंत्र है माँ भुवनेश्वरी का-
“ह्रीं”
इसका मन में अधिकाधिक जप करना शुभ फलों व माता भुवनेशी की कृपा को दिलाने वाला होता है।

ह्रीं को माया बीज भी कहा जाता है, यह अति सरल मन्त्र है। इसमें ह् का अर्थ है शिव, र् का अर्थ है प्रकृति, नाद का अर्थ है विश्वमाता एवं बिंदु का अर्थ दुखहरण है। इस प्रकार इस मायाबीज का अर्थ है ‘शिव सहित विश्वमाता प्रकृति आद्याशक्ति मेरे दुखों को दूर करे।’

भुवनेश्वरी एकाक्षरी मन्त्र जप विधि :

भुवनेश्वरी देवी का मंत्र सिद्ध यंत्र माला लेकर

यंत्र साफ प्लेट में सामने रक्खें –

विनियोग : उपरोक्त मन्त्र के जप से पूर्व यह श्लोक पढ़कर आचमनी से भूमि पर जल छोड़ दे :
ओऽम् अस्य श्री भुवनेश्वरी एकाक्षर मन्त्रस्य शक्तिर्ऋषिः गायत्रीः छन्दः, भुवनेश्वरी देवताः, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, चतुर्वर्गसिद्धयर्थे जपे विनियोगः
(इस एकाक्षर मन्त्र के “शक्ति” ऋषि हैं, छन्द गायत्री, भुवनेश्वरी देवता हैं। हं बीज, ईं शक्ति व कीलक ‘रं’ है और विनियोग ‘चतुर्वर्गसिद्धये’ है अर्थात धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों पुरुषार्थ इस मन्त्र द्वारा प्राप्त होते हैं।)ऋष्यादिन्यास :
ॐ शक्तिर्ऋषये नमः शिरसि ।।
(सिर का स्पर्श करे)
गायत्री छन्दसे नमः मुखे।।
( मुख का स्पर्श करे )
भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदिः।।
( हृदय को स्पर्श करे )
हं बीजाय नमः गुह्ये ।।
(बायें हाथ से नितम्ब स्पर्श करे )
ईं शक्तये नमः पादयोः।।
( पैरों को स्पर्श करे )
रं कीलकाय नमः नाभौ ।।
( नाभि स्पर्श करे )
चतुर्वर्गसिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।।
(सभी अंगों को छुए)

इसके बाद करन्यास, षडंगन्यास ‘ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः’ इत्यादि से करे –

करन्यास :
ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श करे)
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
(दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श करे)
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
(अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श करे)
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।
(अनामिका अँगुलियों का स्पर्श करे)
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
(कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श करे)
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
(हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श करे)हृदयादि षडंगन्यास :
ॐ ह्रां हृदयाय नमः। (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। (दाहिने हाथ की चार अंगुलियों से सिर का स्पर्श)
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्। (दाहिने हाथ के अंगूठे से शिखास्थान का स्पर्श)
ॐ ह्रैं कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श)
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्। (दाहिने हाथ की अनामिका व तर्जनी अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों का और मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्। (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)ध्यान : भगवती भुवनेश्वरी का ध्यान इस प्रकार है –
बालरविद्युतिमिन्दुकिरीटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्ताम् ।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥
इसका भाव है कि “मैं भुवनेश्वरी देवी जी का ध्यान करता हूँ जिनके श्रीअंगों की आभा प्रभातकाल के सूर्य के समान है और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है। वे तुंगकुचा और तीन नेत्रों से युक्त देवी हैं। उनके मुख पर मुस्कान की छटा छायी रहती है और हाथों में वरद, अङ्कुश, पाश एवं अभय-मुद्रा शोभा पाते हैं।”

पूजन : भुवनेश्वरी महाविद्या यन्त्र, भुवनेश्वरी देवी जी के चित्र पर या फिर श्री यन्त्र पर निम्न प्रकार से पूजन करे :

१- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः लं पृथिव्यात्मकं गंधं परिकल्पयामि|
( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं पृथ्वीरूप गन्ध (चन्दन) आपको अर्पित करता हूँ )

२-ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि |
(देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं आकाशरूप पुष्प आपको अर्पित करता हूँ )

३-ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि |
( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं वायु के रूप में धूप आपको प्रदान करता हूँ )

४- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि |
( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है। मैं अग्नि के रूप में दीपक आपको प्रदान करता हूँ )

५- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि |
(देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूँ )

६- ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं मनसा परिकल्प्य समर्पयामि |
( हे देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं सर्वात्मक रूप में संसार के सभी उपचारों को आपके चरणोंपुरश्चरण विधि :
उपरोक्त मन्त्र के पुरश्चरण के लिये ३२ लाख बार मन्त्र जप करने का विधान है। साथ ही जप का दशांश हवन (तीन लाख बीस हजार बार) त्रिमधु मिलाकर अष्टद्रव्यों से करे । त्रिमधु होता है : घृत, मधु, शर्करा। अष्ट-द्रव्य आठ हैं : १. अश्वत्थ (पीपल), २. यज्ञोदुम्बर (गूलर), ३. पाकड़, ४. वट, ५. तिल, ६. सफ़ेद सरसों, ७. पायस (दूध/खीर), ८. घृत।
एक अन्य मत से अष्ट द्रव्य ये भी हैं : ईख, चावल का आटा, कदली फल (केला), चिउड़ा(कुटा चावल /पोहे वाला चावल), तिल, लड्डू, नारियल, खील।
इतना अधिक मन्त्र जप तथा हवन एक दिन में सम्भव नहीं। यदि एक सेकंड में दो बार उपरोक्त जप किया जाता है तो उस हिसाब से एक घंटे में 3600सेकंडx2=7200 (67 माला) जप हो सकता है। अतः इस प्रकार से अपनी सुविधा के अनुसार दिनों में जप व हवन संख्या को बांट लेना चाहिए। प्रतिदिन जप करके देवी को समर्पित कर देना चाहिए :
जप समर्पण प्रार्थना : ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत् कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत् प्रसादान्महेश्वरि॥पुरश्चर्या हेतु सुझाव: ⭐यदि इस मन्त्र की 134 माला प्रतिदिन की जाती है जिसमें लगभग 2 घंटा लगेगा तो प्रतिदिन 14472 जप होगा और 222 दिनों (लगभग 8 महीने) में 3212784 जप हो जाएगा…

⭐इस प्रकार जब साधक 32 लाख जप पूरा कर ले तो 3 लाख 20 हजार हवन को भी इसी प्रकार प्रतिदिन के हिसाब से बाँट ले और “ॐ ह्रीं स्वाहा” से हवन सम्पन्न कर लें…. [3200 (30 माला) हवन प्रतिदिन 100 दिन तक ]

⭐इसके बाद साधक 32000 बार देवी का तर्पण करे अर्थात श्री यन्त्र पर या देवी के विग्रह पर आचमनी से 32000 बार जल अर्पण करे…प्रत्येक तर्पण में “ॐ ह्रीं भुवनेश्वरीं तर्पयामि नमः” मंत्र बोले [320 (3 माला) तर्पण प्रतिदिन 100 दिन तक]

⭐तर्पण के बाद साधक 3200 बार अपने मस्तक पर मार्जन करे अर्थात “ॐ ह्रीं नमः मार्जयामि” बोलते हुए कुश या दूब से 3200 बार माथे पर जल छिड़के।[32 मार्जन प्रतिदिन 100 दिन तक]

⭐इसके बाद 320 ब्राह्मण को भोजन कराये यह न हो सके तो 320 बार जरुरतमन्द लोगों को,मन्दिर आदि स्थानों में ह्रीं का स्मरण करते हुए खाना बाँट दे।
इस प्रकार यह 1 पुरश्चरण सम्पन्न हो जाएगा। यदि अच्छे परिणाम मिलें तो साधक चाहे तो कुल 5 पुरश्चरण कर सकता है।
इन सब कार्यों में समय जरुर लगेगा लेकिन यदि कोई यह सब कर ले तो वह निश्चय ही धन्य है… इस सबके बाद भी वह साधक अपनी सुविधा के अनुसार प्रतिदिन (यथा संख्या) जप करता रहे तो देवी भुवनेश्वरी जी का यह बीजमन्त्र जीवन पर्यन्त सिद्ध होकर उस व्यक्ति की किसी न किसी रूप में सहायता अवश्य करेगा। एक बात ध्यान में रहे कि साधक गोपनीयता रखे अर्थात यह पूरी साधना मन्त्र गुप्त रखे गुरु के अतिरिक्त किसी को कुछ न बताए … और कोई सिद्धि मिले या कोई अनुभव हो तो उसको भी सर्वथा गुप्त रखेआदिशक्ति भुवनेश्वरी देवीभागवत में वर्णित मणिद्वीप की अधिष्ठात्री देवी, हृल्लेखा (ह्रीं) मंत्र की स्वरूपाशक्ति, सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा और भगवान शिव के समस्त लीला-विलास की सहचरी हैं।

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